बचपन के वह दिन
यह मेरा बचपन का दिन है मैं करीब 10-11 साल का रहा होगा, गर्मियों का दिन था। पहाड़ों में इस वक्त धान की फसल लगाई जाती है। उसके लिए खेतों के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इस समय पानी डालने को पहाड़ी भाषा में सवाई करना कहते हैं। गर्मियों के समय में गधेरा(छोटी नदियां) का पानी काफी कम हो जाता है। जिस गधेरा मैं हम नहाते थे उसी गधेरा से नालियों में पानी जाता था। जब पानी नालियों में जाएगा तो गधेरा में पानी नहीं बचता था। गर्मियों में वैसे भी पानी गधेरों मैं काफी कम होता है .गधेरा में बरसात के समय काफी ज्यादा पानी आता है जिससे गधेरा में तालाब बन जाता है ।जिस तालाब में हम नहाते थे। उससे दूर एक जगह पानी का स्रोत था। नहाने के ठीक ऊपर एक नहर, खेतों के लिए जाती थी। गधेरा का पानी नहरों के लिए ही सीमित रह पाता था। लेकिन नहाने के लिए तालाब में काफी कम पानी था। उसके लिए हम नहर के पानी को सुबह ही थोड़ी मात्रा में खोल देते थे। खेतों में पानी पहुंचने के लिए काफी समय लगता था उसी समय के उपरांत हम तालाब को भर देते थे। जब तक खेत का मालिक आ पहुंचता था। तब तक तालाब भर चुका रहता था। वह हमें काफी डांटता लेकिन हम अनजान बन कर नहा लेते थे।खेत का मालिक काफी गुस्से में आकर अनाप-शनाप बक देता था। लेकिन हम उस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। यदि कभी कभार मार खाने की नौबत आती तो हम दूसरे गांव के लोगों के नाम कह देते और खुद नहा लेते ऐसा ही दिनचर्या गर्मियों के समय में चलता था। आज इस वक्त ना तो नहाने के लिए लोग हैं और नाही लोग घर पर हैं सभी अपने अपने कार्य में व्यस्त हैं काश यह दिन भी आज बचपना की तरह होता तो आज ही ऐसे शरारती करते।।
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